मिलने ही चाहिए पत्रकारों को फ्लैट, गोपालजी के साथ जुट जाएं संगठन


विधायक बने पत्रकार ने किया अपना काम, अब उसे मजबूत करना हमारा काम

रूपेश टिंकर

जयपुर। राजस्‍थान विधानसभा में शुक्रवार को विधायक गोपाल शर्मा ने जिस तरह से पत्रकारों की आवास की समस्‍या को उठाते हुए बहुमंजिला आवासीय  परिसर की मांग उठाई, उससे वर्षों से अपने आवास के लिए जूझ रहे पत्रकारों में एक उम्‍मीद जगी है। विधानसभा में सरकार और 200 विधायकों के समक्ष ऐसी मांग वही उठा सकता है, जो विषम परिस्थितियों में काम करने वाले पत्रकारों की पीड़ा को समझता है। विधायक गोपाल शर्मा खुद पत्रकार जगत के पुरोधा हैं और पत्रकारीय कर्म और पत्रकार जीवन के हालात ओर पीड़ा बखूबी जानते हैं। 

गोपाल शर्मा तो विधायक बनकर भी अपना काम कर रहे हैं, लेकिन अब हमें भी उनकी आवाज बनकर सत्‍ता के कानों तक पहुंचना ही चाहिए और  अपने होने और उप‍योगिता का अहसास सरकार को कराना चाहिए। गोपाल शर्मा के विधानसभा में कह देने भर से पत्रकारों को फ्लैट नहीं मिलने वाले। इसके लिए सभी पत्रकारों और पत्रकार संगठनों को भी आगे आकर गोपाल शर्मा की आवाज बुलंद करनी होगी। उनके नेतृत्‍व में सभी को सरकार से बात करनी होगी और अपनी आवास समस्‍या का अहसास सरकार को भी करवाना होगा। वैसे भी पिछली सरकार के स्‍वार्थपूर्ण और अनैतिक कार्यों से पत्रकारों की पीड़ा और बढ़ी है और मुख्‍यमंत्री भजनलाल शर्मा से सभी को काफी उम्‍मीदें हैं। 

गौरतलब है कि विधायक गोपाल शर्मा हमेशा से पत्रकारों की समस्‍याओं के हल के लिए आगे बढ़कर सहयोग करते आए हैं। पिछली कांग्रेस सरकार में अपने आवंटित भूखंड के लिए सतत संघर्ष कर रहे पिंकसिटी प्रेस एनक्‍लेव, नायला के साल 2013 के नीतिगत भूखंडधारी 571 पत्रकारों के सहयोग के लिए एकमात्र गोपाल शर्मा ही सहयोग के लिए आगे आए थे। उन्‍होंने न सिर्फ यूडीएच सचिव कुंजीलाल मीणा को समझाने का प्रयास किया कि 571 आवंटी पत्रकारों के भूखंड जायज हैं, बल्कि जरूरत पड़ने पर आवंटियों के साथ महामहिम राज्‍यपाल कलराज मिश्र तक से मिलने पहुंचे।  यह अलग बात है कि अपने चापलूसों से घिरे हठधर्मी मुख्‍यमंत्री अशोक गहलोत ने न सिर्फ प्रदेश के भूमि निष्‍पादन नियम 1974 का उपहास‍ किया, बल्कि महामहिम मिश्र के पत्र को भी डस्‍टबीन में डाल दिया। 

यह भी अच्‍छी बात है कि विधायक गोपाल शर्मा ने विधानसभा में साफ कहा कि पत्रकारों के लिए बहुमंजिला आवासीय परिसर बनने चाहिए और इसमें पत्रकारों की भूखंड योजनाओं पर  असर नहीं पड़ना चाहिए। क्‍योंकि विधायक जानते हैं कि 571 आवंटी पत्रकारों को कांग्रेस सरकार की अनीति और अन्‍याय के कारण हाई कोर्ट की शरण लेनी पड़ी। कांग्रेस सरकार के अनैतिक निर्णय से हाई कोर्ट में लड़ रहे 571 पत्रकारों को अब इस सरकार में राहत मिले, इसके लिए भी सभी को एकजुट होकर काम करना होगा। सभी जानते हैं कि नायला स्थित पिंकसिटी प्रेस एनक्‍लेव की भूमि को इकॉलोजिकल में डालकर बंद कर दिया गया था। गहलोत सरकार की पत्रकार आवास समिति तो खोरी रोपाड़ा में पत्रकारों के लिए जमीन ढूंढती फिर रही थी। खुद यूडीएच सचिव विधानसभा में कह चुके थे कि नायला की जमीन इकॉलोजिकल में है। 571 आवंटियों ने लम्‍बा संघर्ष करते हुए इसे इकॉलोजिकल जोन से बाहर निकलवाया और गहलोत सरकार से इसके लिए पुरजोर मांग की। लेकिन अपनी चुनावी लालसाओं को पूरा करने और अपने चहेते चापलूसों को चुनावी रिश्‍वत देने की मंशा से चुनाव से ठीक पहले आवंटित भूखंडों पर बिना सार्वजनिक सूचना प्रकाशित किए नए आवेदन ले‍ लिए गए। गहलोत सरकार ने नायला के  571 आवंटियों के सत्‍य और तथ्‍य को कुचलते हुए एक बार भी उनसे न तो बात की और न ही उनके पत्रों का कोई जवाब देना उचित समझा। यह जानते हुए कि सभी 571 आवंटी जेडीए की एक लिपीकीय  त्रुटि का दंश झेल रहे हैं और इनमें से कई मर भी चुके हैं, उनके प्रति संवेदनाशून्‍य होकर उन्‍हें और उनकी जायज मांग को कुचल दिया गया। 

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