571 पत्रकारों के 10 साल के अधिकारों का विरोध क्यों, ये पत्रकारिता है या चाटुकारिता
स्वांगी ने किया पत्रकारिता को शर्मसार
जयपुर। जेडीए की एक लिपिकीय त्रुटि का 10 साल से दंश झेल रहे पिंकसिटी प्रेस एनक्लेव, नायला के 571 आवंटी पत्रकारों के जायज अधिकारों का सत्ता के मद में चूर हुक्मरानों से मिलकर पत्रकार के छद्म वेश में छिपे चाटुकारों ने दमन करने का प्रयास किया है। सरकार के वज्रपात से आहत 571 पत्रकारों ने न्यायालय की शरण में पहुंचकर बमुश्किल जान बचाई है, वरना 5 दिन के खेल में जेडीए के रिकॉर्ड से 571 के आवंटन को समूल नष्ट कर दिया जाता।
नगरीय विकास के सभी कानून कायदों की अवहेलना करते हुए चुनाव के मद्देनजर 5 दिनों का जो खेल खेला गया और उसमें अल्प शिक्षित और पत्रकारिता की मूल अवधारणा से अनभिज्ञ पत्रकार नेताओं ने नोसिखियों को प्लॉट का प्रलोभन देकर आगामी चुनावी राजनीति के जाल में फंसा ही लिया है। 571 पत्रकार, जिनमें से 2 दर्जन तो दुनिया में भी नहीं है, उनके परिजनों तक के अरमानों को निर्ममता से रौंदा गया। नुकसान किसी का भी हो रहा हो, परंतु शर्मसार तो पत्रकारिता को होना पड़ा है। जेडीए और सरकारों की लापरवाही से प्रताड़ित 571 परिवारों के अधिकारों को कुचलकर अपना घर बसाने की कुंठा किसी भी दृष्टि में पत्रकारिता नहीं हो सकती। और ऐसे सपनों के जाल में उलझे आवेदक और उन्हें इस जाल में उलझाने वाले नेता तो पत्रकार कतई नहीं हो सकते। जिन तथ्यों को 10 साल में कोई नेता समझ नहीं पाया और जब पीड़ितों ने इन्हें समझा तो उनका बेदर्दी से हमेशा मजाक उड़ाया गया। पत्रकारिता की समझ रखने वालों ने पुरानी गुत्थी सुलझा भी ली तो सरकार से मिलीभगत कर सत्ता की ताकत से कुचलने के प्रयास में भी कोई कसर नहीं छोड़ी। नाथी के बाड़े में बैठकर छद्मवेशी पत्रकार स्वांगी ने पत्रकारिता का शर्मनाक अध्याय लिखा है, लेकिन जीत हमेशा सत्य की ही होती आई है और बड़े से बड़े स्वांग सत्य के समक्ष धराशाई ही हुए हैं।
न्यायालय में विचाराधीन मामले पर ज्यादा तो लिखा नहीं जा सकता, परंतु इतना जरूर है कि न्याय के मंदिर में न्याय जरूर होगा। पिछले एक साल में 571 पत्रकारों के अधिकारों और पीड़ा पर अनेक समाचार और लेख लिखे हैं, जिनसे भी सत्ता और खुद को पत्रकार बताने वाले नेताओं को सत्य का संज्ञान नहीं हुआ, जो कि पत्रकारिता को कलंकित करने वाला ही कृत्य है।
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