अनैतिकता की हद है, मृत पत्रकारों के आश्रितों से प्लॉट भी छीनना चाहती है सरकार
संधू व रांका बताएं कि साल 2013 में 571 पत्रकारों को क्यों दिए थे प्लॉट
जयपुर। सरकार और प्रशासन ने भी संवेदनहीनता की सारी हदें पार कर निर्दोष पत्रकारों को कुचलने का मन बनाया है। गत 10 साल से संघर्षरत 571 आवंटी पत्रकारों के सैकड़ों संवेदना पत्रों को नजरअंदाज कर बिना उन्हें सुने उनकी 10 साल पहले बसाई बस्ती उजाड़ने की तैयारी नजर आ रही है और सरकार से निराश 571 पत्रकार अपने वाजिब अधिकार के लिए अब न्यायालय की शरण में जा चुके हैं। दुखद है कि प्लॉट के लोभी मिलकर मृतक पत्रकारों के परिजनों को आवंटित प्लॉट भी छीन लेना चाहते हैं।
गौरतलब है कि 10 साल पहले यूडीएच के प्रमुख सचिव जीएस संधू, जेडीसी कुलदीप रांका, डीपीआर के प्रमुख सचिव राजीव स्वरूप, डीपीआर लोकनाथ सोनी, मुख्यमंत्री के मीडिया सलाहकार एम यासीन, वरिष्ठ पत्रकार भुवनेश जैन, सनी सबेस्टियन, नारायण बारेठ व अन्य की प्रदेश स्तरीय पत्रकार आवास समिति ने तीन साल की मशक्कत के बाद 571 पत्रकारों को प्लॉट आवंटन के पात्र और योग्य करार देकर जेडीए को प्लॉट आवंटन के लिए सूची भेजी थी। इस पर स्वयं यूडीएच मंत्री शांति धारीवाल, सचिव जीएस संधू, जेडीसी कुलदीप रांका और अन्य ने सभी 571 पत्रकारों को लॉटरी निकालकर प्लॉट आवंटित किया था। जिसकी पंजीकरण राशि 10 हजार रुपए भी जेडीए के खाते में जमा कर लेजर शीट खोल दी गई थी। समस्त प्रक्रिया पूरी कर मात्र डिमांड राशि जमा कर कब्जा पत्र दिए जाने थे। लेकिन ब्रोशर में छपे एक असंवैधानिक बिंदु जिसे स्वयं आवास समिति की बैठकों में विलोपित किया जा चुका था और जिसे उच्च न्यायालय में जाकर लिपिकीय त्रुटि बताया है, को आज तक नहीं हटाया है।
सभी जानते हैं कि प्रदेश में गहलोत सरकार की पत्रकार आवास नीति के तहत 5 वर्ष की सक्रिय पत्रकारिता का अनुभव रखने वाले सभी पत्रकार पात्र हैं और इस आधार पर प्रदेश भर में पत्रकारों को भूखंड दिए गए हैं। लेकिन जयपुर जेडीए में ही ब्रोशर के तहत अधिस्वीकरण को जरूरी बताकर 571 के प्लॉट 10 साल से रोक रखे हैं। सरकार में पत्रकारों के हितैषी और प्रतिनिधि बनकर जाने वाले किसी भी नेता ने आज तक सरकार से यह कहने की हिम्मत नहीं दिखाई कि इस योजना में प्लॉट आवंटन के बाद अधिस्वीकरण मांगना गलत है और ब्रोशर के इस अनैतिक बिंदु को हटाकर सभी 571 पत्रकारों को प्लॉट दिए जाने चाहिए। इसके उलट सरकार से लाभान्वित होने वाले सभी पत्रकार नेता अब इस बात पर अड़े हैं कि 571 को दिए जा चुके प्लॉट निरस्त कर वर्तमान में पात्रताधारी बने नए पत्रकारों को ये प्लॉट दे दिए जाएं। जबकि सभी को पता है कि जेडीए के दस्तावेजों में सभी 571 प्लॉट दस साल पहले ही पत्रकारों के नाम लिखे जा चुके हैं और उनकी समस्त जानकारी जेडीए की वेबसाइट पर मौजूद हैं। खुद को पत्रकार कहने वाले इन नेताओं की नैतिकता इस हद तक मर चुकी है कि उन्होंने सरकार के अधिकारियों के साथ मिलकर 571 की बसी बसाई बस्ती उजाड़ने की पटकथा लिखवाई है, लेकिन पुरानी गलतियों को छिपाने के लिए नई गलतियां और कर दी गई है।
प्रशासन ने महाधिवक्ता को 571 की योजना की पुरानी पात्रताएं और कोर्ट में चले प्रकरण की वास्तविकता छिपाकर लिखवाया है कि योजना में नगरीय भूमि निष्पादन नियम 1974 के अनुसार रियायती दर पर भूमि के लिए पत्रकार का अधिस्वीकृत होना जरूरी है और योजना के 571 आवंटियों में केवल 12 ही अधिस्वीकृत हैं। इसलिए सरकार नियम 31 के तहत नियमों में अधिस्वीकरण से शिथिलता दे सकती है। और यदि किसी योजना की पात्रता में नई शिथिलता दी जाएगी तो नए आवेदनों को भी शामिल कर नए सिरे से प्लॉट आवंटन किए जा सकेगे। महाधिवक्ता से राय लिखवाने वाले यह भूल गए कि योजना का सृजन ही सरकार के 20 अक्टूबर 2010 के उस आदेश से हुआ है, जिसमें यह शिथिलता दी जा चुकी थी और इसी आधार पर तो जीएस संधू, कुलदीप रांका की कमेटी ने 559 गैर अधिस्वीकृत पत्रकारों को योग्य एवं पात्र करार दिया है। 571 के प्लॉटों पर सभी की जीभ लपाके मार रही है और सत्ता के मद में सभी मिलकर 571 के अधिकारों को छीनना चाहते हैं, जो सभी 571 जागरूक पत्रकार होने नहीं देंगे।
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