गहलोत की मंशा पर फेरा पानी, अब नपेंगे जवाबदेह!
कइयों ने उलझाए है पत्रकार आवास के सपनों के तार
जयपुर। प्रत्येक कार्य की जवाबदेही समय आने पर जरूर तय होती है। नैतिक कार्यों का फल हमेशा मीठा और अनैतिक का फल कड़वा आना तय है। जवाबदेही तो सरकार के 5 साल के काम काज की भी चुनाव में तय हो ही जाती है।
पिंकसिटी प्रेस एनक्लेव, नायला के निर्दोष 571 परिवारों के सवालों से भागने वालों को भी जवाब तो देना होगा। पिछले 8 माह में इकोलॉजिकल लिखने की गलती का सुधार हुआ, लेकिन कोर्ट के समक्ष की गई लापरवाही और ब्रोशर में मानी जा चुकी लिपिकीय त्रुटि नहीं सुधारने का जवाब भी तो देना होगा। आवंटी पत्रकारों ने अनेक बार जेडीए से लेकर मुख्यमंत्री कार्यालय तक लिखित पत्र देकर पूछा है कि योजना की प्रक्रिया में उनकी क्या गलती है। आज तक किसी से कोई जवाब देते नहीं बन रहा है। अब आवंटी पत्रकारों ने 8 माह के संघर्ष के बाद जब यह तय किया है कि कोर्ट की शरण में जाएंगे तो सभी जिम्मेदारों को जवाब कोर्ट में तो देना ही होगा।
भारतीय संवैधानिक व्यवस्था में जवाबदेही अनिवार्य है। जवाबदेही तो प्रकृति भी तय करती है और ईश्वर की व्यवस्थाओं में भी जवाबदेही सर्वोपरि व्यवस्था है। जवाबदेही तो मुख्यमंत्री की मंशा अनुसार राजधानी के पत्रकारों को आवास उपलब्ध कराने में विफल रही राज्य स्तरीय पत्रकार आवास समिति की भी है। वहीं जवाबदेही उन नेताओं की भी तय है, जिन्होंने नेतागिरी और निज स्वार्थ के चलते 571 आवंटियों के अरमानों से खेल खेला है। जवाबदेही तो वर्तमान में 571 के समर्थन पर सवार होकर कुर्सी तक पहुंचे '' विद्वजनों" की भी तय है। और जवाबदेही उनकी भी तय है, जिन्होंने प्लॉट के सपने दिखाकर 10 साल से कुर्सी पर बैठकर कुर्सी को ही लजाया है। कुल मिलाकर समय आने पर सबकी जवाबदेही का हिसाब होना तय है।
राजधानी के पत्रकारों का फिलहाल आवास एक बड़ा सपना है, जिसे मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने दिखाया है। इसके लिए उन्होंने दिसंबर, 21 में ही पत्रकार आवास समिति का गठन कर कुछ जिम्मेदारियां तय की थी। अब जब ये सपना टूटने वाला है तो इसका दोष भी कुछ अति ज्ञानी मुख्यमंत्री को ही देते फिर रहे हैं। जिस काम को उन्हे सौंपा गया, उसके लिए तो कुछ ठोस किया नहीं, उलटे पूर्व में हो चुके काम को बिगाड़ने में भी कसर नहीं छोड़ी।
मुख्यमंत्री की मंशा अनुसार पूरे प्रदेश में पत्रकारों को प्लॉट दिए गए हैं और दिए जा रहे हैं, लेकिन राजधानी में ही नकारे लोग उन्हे बदनाम करने की कवायद कर बैठे हैं। 571 पत्रकारों ने तो अपने न्याय के लिए 8 माह से ऐतिहासिक संघर्ष किया है। उन्हे मुख्यमंत्री ने भी 3 बार न्याय का भरोसा दिलाया है। इसके लिए जिन अधिकारियों को नायला योजना के गतिरोध दूर करने की जिम्मेदारी दी गई, पिछले 3 माह में पूरी जवाबदेही के साथ पूरी हुई है। इसी का नतीजा है कि अब 571 निर्दोष आवंटियों की प्रक्रिया पूर्ण होगी। जेडीए की लिपिकीय त्रुटि उजागर हो चुकी है। सुधारने के लिए एजी को फाइल भेजी गई है। दूध का दूध और पानी का पानी हो चुका है। अगर अब भी किसी नकारे ने अड़ंगा लगाया तो न्याय की गुहार कोर्ट में होगी। ऐसा लगता नहीं कि नायला योजना का प्रशासनिक हल होने बाद भी सरकार उसे रोकेगी, लेकिन फिर भी प्रक्रियागत देरी से नाराज आवंटियों ने कोर्ट जाने की तैयारी कर ली है।
बहरहाल साल 2013 में नायला योजना के आवंटन के बाद के पत्रकारों के प्लॉट के अरमानों से खेलने वालों की जवाबदेही भी निश्चित ही तय होगी।
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