सीएम की भद्द पिटवा रही नकारा समिति और नकारा अधिकारी



निराश 571 आवंटी पत्रकार कर सकते हैं कोर्ट में गुहार

रूपेश टिंकर

जयपुर। राजनीतिक साजिशों के शिकार बने 10 साल से भटक रहे पिंकसिटी प्रेस एनक्‍लेव, नायला पत्रकार नगर के 571 आवंटी पत्रकार पिछले 8 माह से चीख चीख कर कह रहे हैं कि कोई उन्‍हें इतना ही बता दे कि उनकी क्‍या गलती है, लेकिन जेडीए के बाबू की गलती पर पर्दा डालते हुए सभी इसे वापस गहरी गर्त में डालने में जुटे हैं। पिछली सरकार में भी यह योजना इकॉलोजिकल जोन के नाम पर गहरे गड्ढे में दफन कर दी गई थी, लेकिन आवंटी पत्रकारों ने गड्ढे से बाहर निकाल वापस जिंदा कर दिया।  आंदोलनरत 571 आवंटी पत्रकारों को सीएम के करीबी कुछ नकारा लोग ही यह कह कर भड़का रहे हैं कि मुख्‍यमंत्री को किसी भी हाल में 571 आवंटियों के साथ न्‍याय नहीं करने देंगे। घेराबंदी तोड़ सीएम से मिलने में विफल 571 पत्रकारों ने अब न्‍यायालय की ही शरण लेने का मन बनाया है। लेकिन अगर इन 571 पत्रकारों की सीएम से आस टूटी तो सरकार की विफलताओं पर समाचारों का मोर्चा खुलना भी तय है। 

मुख्‍यमंत्री अशोक गहलोत तो चाहते हैं कि पत्रकारों को रियायती दरों पर प्‍लॉट मिले और इसके लिए तो उन्‍होंने दिसम्‍बर, 2021 में ही पत्रकारों और अधिकारियों की उच्‍च स्‍तरीय समिति भी बना दी थी, लेकिन पत्रकारों के भूखंड के सपनों को नकारा समिति ने चकनाचूर कर दिया है। तत्‍कालीन यूडीएच सचिव कुंजीलाल मीणा की अध्‍यक्षता वाली इस समिति ने पहले तो एक साल तक महज कुछ मीटिंगें कर सरकारी समोसा, कचौरी, चाय के आनंद उठाए। समोसा, कचौरी के आनंद लेते हुए समिति जून, 2022 में पत्रकारों के लिए जमीन देखने खोरी रोपाड़ा जरूर पहुंची, लेकिन समिति को सुपरसीड करते हुए पिंकसिटी प्रेस क्‍लब के तत्‍कालीन नेता भी हिलोरें लेने जा पहुंचे। समिति और नेताओं ने अलग अलग प्रेस नोट जारी कर इसे अपनी उपलब्धियों में गिनाया, लेकिन नकाराओं के सरदार यूडीएच सचिव कुंजीलाल ने तो इन्‍हें ऐसी जमीन को देखने भेज दिया था, जिसे एक साल पहले ही हेरिटेज जयपुर के नाम पर आरक्षित किया जा चुका था। अधिकारियों की ब्रीफींग के भरोसे पत्रकार कहलाने वाले महानुभाव ठगे गए थे, लेकिन सरकारी समोसा, कचौरी के ये रसिया वापस रस में डूब गए। 

जब चलो नायला संगठन के नेतृत्‍व में साल 2010 की आवास समिति के चयनित 571 आवंटी पत्रकार अक्‍टूबर, 22 में अपनी जमीन पर नायला पहुंच गए तो इनके पैरों की तो जमीन ही खिसक गई। आवंटियों ने जेडीए पर प्रदर्शन कर मास्‍टर प्‍लान जोन को हिलाया तो पिछली सरकार में साजिशन इकॉलोजिकल के नाम दफन कर दी गई योजना वापस बाहर निकलकर चमचमाने लगी। साल 2013 में लाटरी से आवंटन के बाद 571 पत्रकारों के नाम हो चुकी योजना की चमक से समिति और समिति से आस लगाए बैठे साल 2013 के बाद के कई पत्रकारों आंखें चुंधिया गई। चलो नायला संगठन के पत्रकार तो फाइलें पढ़ते पढ़ते आगे बढ़ चले, लेकिन नई योजना बनाने में नाकाम समोसा कचोरी चाय के रसिये अब इस जमीन को वापस डुबोने में जुट गए। पहले तो प्रदेश कांग्रेस के शीर्षस्‍थ नेता की अगुवाई में मुख्‍यमंत्री को भरमाया गया और बाद में यूडीएच सचिव के जरिये सत्‍य पर पर्दा डालने के पुरजोर प्रयास किए गए। पहले से एक बाबू की गलती से परेशान पुरानी योजना के 571 आवंटियों की जमीन पर बुरी नजर डालने वालों के मंसूबे विधि अनुसार तो कभी कामयाब नहीं हो सकते और नए पत्रकारों के सपनों से खिलवाड़ की कीमत भी इन्‍हें भविष्‍य में चुकानी होगी।

जब मुख्‍यमंत्री ने नवम्‍बर में बारां में और बाद में पीसीसी वार रूम में और इसके बाद 4 साल की पीसी के दौरान दिसम्‍बर में आवंटियों से कह दिया था कि जल्‍दी ही वे प्‍लॉट दे देंगे तो सभी ने मिलकर इतने अड़ंगे लगाए कि जून आने तक भी मुख्‍यमंत्री 571 के साथ न्‍याय नहीं कर पाए। 

घटियापन की हद है कि सीएम को घेरे खड़े 571 आवंटियों के विरोधी दस साल में दिवंगत हो चुके पत्रकारों के परिजनों से भी कोई सहानुभूति नहीं रखते हैं। वे खुले में कहते हैं कि जो मर गए हैं, उन्‍हें तो प्‍लॉट कैसे दिए जा सकते हैं। 

हाल ही में 5 जून को दुर्गापुरा में आयोजित पत्रकार सम्‍मेलन में भी आवास समिति के एक नेता वहां मुख्‍यमंत्री से मिलने की आस में एकत्र 571 पत्रकारों को जोर जोर से कह रहे थे कि कुछ भी कर लो, कुछ नहीं होगा। हमने नोटशीट चला दी है। 2010 की आवास समिति ने चयन में ढेरों ग‍लतियां की थी, जिनका सुधार मौजूदा समिति ही करेगी। सभी को नई समिति के सामने हाथ पसारने ही होंगे। आवास समिति के सदस्‍य होने के गुरूर में चूंच ये नेता जेडीए के विधि विभाग के लिखे कागजों को भी झुठलाते हैं। वे राज्‍य सरकार के 28 फरवरी, 13 के राज्‍य भर में लागू यूडीएच के आदेश भी नहीं मानते और ब्रोशर में प्रमाणित हो चुकी लिपीकीय त्रुटि को भी नहीं देखना चाहते। 

ऐसी चौकड़ी से घिरे मुख्‍यमंत्री को पत्रकार सम्‍मेलन में भी 571 पत्रकारों ने मिलने नहीं दिया गया। और अब आवंटियों को लगता है कि इस चौकड़ी के रहते मुख्‍यमंत्री भी पत्रकारों के दर्द से दूरी ही बनाए रहेंगे। अब तो दिल्‍ली दरबार या न्‍यायालय से ही इस लिपीकीय त्रुटि का निदान हो पाएगा।

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