शाह नीति - सत्ता भी मिली, शिवसेना से पीछा भी छूटा
मोदी - शाह ने कांग्रेस को फिर दिया झटका
जयपुर। राजनीतिक कौशल और दूरगामी सोच के बल पर भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने एक बार फिर महाराष्ट्र में बड़े राजनीतिक उलटफेर के साथ भाजपा सरकार बना कर अपनी काबिलियत सिद्ध कर दी है। महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के परिणाम आने के साथ ही भाजपा ने आगामी रणनीति तैयार कर ली थी, उसे पता था कि शिवसेना इस बार भी उसे आंखें दिखाएगी और इस बार उसे शिवसेना से पीछा छुड़ाना ही होगा। भाजपा को क्या करना है, यह पहले से ही तय कर लिया गया था। महाराष्ट्र में भाजपा के अभियान में अड़चन बन चुकी शिवसेना से वैसे भी भाजपा को किनारा करना था। गत देवेंद्र फडणवीस सरकार के कार्यकाल में भी गठबंधन में शामिल शिवसेना ने अनेक बार आंखें दिखाई। उस समय भी राकांपा ने सरकार बचाने के लिए भाजपा को समर्थन देने के संकेत दे दिए थे। लोकसभा चुनाव से पहले भी राकांपा व भाजपा गठबंधन के प्रयास नजर आए थे, लेकिन शिवसेना के साथ रहते यह संभव नहीं हुआ। गठबंधन तोड़ने का ठीकरा शिवसेना के सिर ही फोड़ने की रणनीति पर भाजपा पहले से काम कर रही थी।
महाराष्ट्र और हरियाणा में साथ चुनाव के बावजूद भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह की एक राज्य में तत्काल गठबंधन सरकार बनाने और दूसरे में खामोशी की वजह पार्टी की दूरगामी सोच थी।
इसके मुताबिक ही सरकार गठन की आखिरी तारीख से एक दिन पहले तक भाजपा ने अपनी ओर से शिवसेना को मनाने की कोशिश का संदेश दिया। फिर 8 नवंबर को देंवेद्र फडणवीस ने इस्तीफा दे दिया। भाजपा की रणनीति राष्ट्रपति शासन की ओर जाने की थी।
प्रधानमंत्री मोदी से शरद पवार की 40 मिनट चली मुलाकात भी सरकार गठन के संकेत दे चुकी थी। मोदी- पवार की मुलाकात के बाद भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने पीएम मोदी से मुलाकात की थी। पूरी पटकथा इसी बैठक में बनी, लेकिन मोदी-शाह ने गोपनीयता बनाए रखी। राकांपा की ओर से अजित पवार भाजपा की ओर कदम बढ़ाएंगे, न कि शरद पवार। इसी फॉर्मूले पर काम तेज किया गया। भाजपा चाहती थी कि शिवसेना और कांग्रेस दोनों को बेनकाब किया जाए। इसलिय सत्ता के मुहाने पर लाकर शाह ने शह दी और शिवसेना-कांग्रेस मात खा गई।
सूत्रों के मुताबिक, लोकसभा चुनाव के वक्त भी राकांपा से
भाजपा नेतृत्व को गठबंधन करने का संकेत था, लेकिन बदले में शिवसेना को एनडीए से अलग करने की शर्त रखी गई थी। तब भाजपा ने मना कर दिया था। लेकिन शिवसेना के रुख से परेशान भाजपा को इस बार मौका मिला तो देर नहीं की।
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